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उम्मीद शांति की, इंतज़ार नए देश का

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अफ्रीकी देश सूडान के दक्षिणी हिस्से में 9 से 15 जनवरी तक चला जनमत संग्रह इस दौर की उन चंद अहम घटनाओं में से एक है जिस पर पूरी दुनिया की उम्मीद एवं इंतजार भरी निगाहें लगी हैं। उम्मीद इस बात की कि जनमत संग्रह के नतीजों के साथ ही वहां पर वर्षों से चल रहे जातीय तनाव का अंत होगा जो वर्ष 1983 से शुरू होकर 2005 में हुए शांति समझौते तक 20 लाख से ज्यादा लोगों के कत्ल की वजह बना , जिसके कारण 40 लाख लोगों को घर - बार छोडऩा पड़ा , और जिस दौरान 20 लाख से ज्यादा लोगों को दासता की बेडिय़ां पहना दी गईं। वहीं इंतजार एक नए देश के जन्म लेने का जिसके सूडान से अलग होकर अस्तित्व में आने की पूरी संभावना है। वैसे , इस जनमत संग्रह से पहले हुए सर्वेक्षणों की बात करें तो साफ है कि 22 साल तक गृहयुद्ध की विभीषिका देख चुके सूडान के दक्षिणी हिस्से के लोग स्वतंत्रता के पक्ष में ही मतदान करने वाले हैं। जनमत संग्रह के प्रति उत्साह का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिस देश में ढंग की सडक़ें नहीं हैं और जन - परिवहन के साधन चंद बड़े शहरों तक सीमित हैं , वहां लोग आधा दिन पैदल चलकर या मोटरसाइकिलों पर 50-

तुम्हारे लिए - 3

1) परबत - सा अडिग होता हूँ मैं दुनिया के सामने मोम - सा गलने लगता हूँ तुम्हारे सामने पड़ते ही ... ये क्या से क्या होता जा रहा हूँ मैं तुमसे प्यार होने के बाद झूठ लगती हैं मुझे औरों की कही हर बात तुम्हारे झूठ को जानते हुए कि झूठ है ये सच मानने को जी करता है ... किस भूलभुलैयाँ में खोता जा रहा हूँ मैं तुमसे प्यार होने के बाद आँखों की खिड़कियों पर पलकों का परदा करते ही उभरने लगते हैं रंग - बिरंगे अक्स तुम्हारे वक़्त - बेवक़्त करता हूँ आँखें बंद और मौका निकाल लेता हूँ तुम्हें अपने सामने लाने का ... हज़ारों रंग के इन्द्रधनुष बोता जा रहा हूँ मैं तुमसे प्यार होने के बाद 2) तुम्हारी कही हर बात बात नहीं गीत थी देर तक गुनगुनाता रहा जिन्हें तुम्हारा लिखा हर शब्द शब्द नहीं रीत था जीने का सलीका मान चला जिन्हें लबों से फूटी हँसी झरने की कल - कल थी जैसे आँखें बंद करके सुनी जिसकी खनखनाहट तुम्हारा वो अचानक छू लेना पारसमणि था मानो पल - पल निखरता गया मैं तुम्हारा वो मुड़कर मुस्करा देना किसी तस्वीर से कम नहीं सहेज लिया जिसे यादों के पन्नों पर तुम्हारे होने का मतलब र

तुम्हारे लिए - 2

1) मन की भी आँखें होती हैं देख लेती हैं दूर तक पहाड़ों को लाँघ कर कोहरे की चादर के उस पार समंदर भी नहीं रोक पाते मन की नज़र को तुमसे मिला पहली बार लगा , जानता हूँ तुम्हें सदियों से हज़ारों बार देखा तुम्हें झाँकता था जब अपने भीतर तुमसे होती थी मुलाक़ात मन की आँखों ने सहेज कर रखा था तुम्हें अपनी पलकों पर 2) बहुत भटक लिया बर्फ - सी उजली मगर ठंडी मुस्कराहटों के शहर में बहुत बार देखी चहचहाते चेहरों ने मेरी अनमनी - सी खिलखिलाहट और समझ लिया कि शायद बहुत खुश हूँ मैं भी उनकी तरह एक अरसा बीता किसी ने नहीं पढ़ा मेरे चेहरे को नहीं की कोशिश जानने की कि मेरी आँखें भी हँसती हैं कभी ? इस सारे फ़रेब से निकल कर किसी के सामने बेपरदा होना है मुझे अब जी भर के रोना है ... मुझे फिर से तुम्हारे क़रीब होना है 3) बार - बार कहने पर भी नहीं कहती थी तुम कि करती हूँ प्यार तुमसे जब करता था इसरार इस बात का तुम तकती थी अपलक और मुस्करा देती थी , बस ! उस दिन तुम्हारे बालों में फूल लगाते वक़्त काँटे से जब छिल गयी थी उंगली मेरी चाहा था मैंने कि तुम दुपट्टे का सिरा फाड़कर लपेट दो